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कुंभ का रहस्य
कहते है किसी ने प्रयागराज में कुभ नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा...संगम की रेती पर 12 करोड़ से ज्यादा लोगों की भीड़ में  किसी ने रुद्राक्ष का मुकुट पहन रखा है तो कोई...सालों से एक पैर पर खड़ा है....वहीं कोई कड़ाके की ठंड में सिर्फ भस्म लगाए तपस्या में लीन है...क्या कुछ खास इंतजाम  हैं प्रयागराज में कुंभ के मौके पर...इस रिपोर्ट में देखिए...।।
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्‍यात्‍मिक ये मेला प्रयागराज की धरती पर लगा हुआ है...इसमें श्रद्धालुओं का आना लगातार जारी है….शाही स्‍नान में करोड़ों में लोगों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है....लेकिन इन सबके बीच आकर्षक का केंद्र है वे साधु जो हिमालय की कंदराओं से, गुफाओं से और सरोवर के किनारे तपस्‍या के बाद यहां पहुंचे हैं…..वह भी अपने अनोखे-विरले अंदाज में….….प्रयागराज में होने वाले इस पवित्र महाउत्सव के लिए पूरी दुनिया से श्रद्धालु आए हैं....इस शाही स्नान को देखते हुए....सुरक्षा व्यवस्था को तो पुख्ता किया ही गया है साथ में श्रद्धालूओं के रहने की व्यवस्था को भी चाक चौबंद किया गया है...।।

संगमनगरी प्रयागराज कुंभ के लिए पूरी तरह से तैयार हैसंतों और श्रद्धालुओं का पहुंचना लगातार जारी है...पूरा शहर मानो आस्था में डूबा हुआ है मकर संक्रांति पर होने वाले पहले शाही स्नान से पहले प्रयागराज में सुरक्षा-व्यवस्था को पुख्ता कर लिया गया है....पहले शाही स्नान पर श्रद्धालुओं ने वाराणसी से लेकर प्रयागराज तक आस्था की डुबकी लगाई…..शाही स्नान को देखते हुए प्रयागराज में तीन दिनों तक के लिए 12वीं तक के स्कूल-कॉलेजों को बंद किया गया है….. शाही स्नान के चलते 16 जनवरी को सभी स्कूल बंद किए गए,...ताकि यातायात में किसी तरह की बाधा न आए और बच्चों को भी कोई परेशानी ना हो...इसके अलावा कॉलेजों से अपील की गई है कि वे भी हर परिस्थिति में अपना कॉलेज बंद रखें....साथ ही कुंभ के लिए तैनात स्पेशल पुलिस की तरफ से भी यातायात को लेकर कुछ एडवाइजरी जारी की गई हैं....शहर के अंदर और शहर के बाहर से आने वाले रास्तों में कुछ बदलाव भी किया गया है...।।
15 जनवरी यानि मकर संक्रांति से पहला शाही स्नान शुरू हुआ....इस स्नान का बड़ा महत्व है, इस बार कुंभ मेले में 12 करोड़ से ज्यादा तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद हैयोगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से मेले को लेकर पूरी तैयारियां कर ली गई हैं. सभी अखाड़ों के साधु-संत संगम पर शाही स्नान करेंगे. ये स्नान शांति से निबट जाए, इसके लिए...अखाड़ों का क्रम और स्नान के लिए जगह भी तय कर दी है….यह परंपरा बहुत पुरानी है,..जिसमें 14 अखाड़े शामिल होते हैं.
शाही स्नान की मुख्य तिथि
16 फरवरी 2019 - माघी एकादशी
19 फरवरी 2019 - माघी पूर्णिमा
04 मार्च 2019 -  महा शिवरात्रि
मेले में कल्पवास करने और आस्था की डुबकी लगाने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए...संगम की रेती पर बसाया गया तंबुओं का अस्थाई शहर गहमागहमी से भरपूर है....प्राचीन काल से संगम तट पर जुटने वाले कुंभ मेले की जीवंतता में आज भी कोई कमी नहीं आयी है.... मेले में आस्था और श्रद्धा से सराबोर पुरानी परम्पराओं के साथ आधुनिकता के रंगबिरंगे नजारे देखने को मिल रहे हैं.... कुंभ मेला पृथ्वी पर लगने वाला सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला है। यह प्रत्येक 12 वर्ष पर आयोजित किया जाता है। इस वर्ष भी महाकुंभ पर्व मकर संक्रांति के दिन से इलाहाबाद में शुरू हो रहा है। पृथ्वी पर लगने वाला यह सबसे बड़ा मेला खगोल गणनाओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन से ही प्रारम्भ होता है। इस दिन को विशेष रूप से मांगलिक माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। किसी भी श्रद्धालु के लिए यह जीवन में महत्वपूर्ण मौका होता है जब वह पवित्र नदी में डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त करने के साथ ही एक ही स्थल पर सभी संतों, दार्शनिकों, गुरु, चेलों, संस्कृति तथा धर्म के प्रचारकों के दर्शन भी प्राप्त कर सकता है।
कुंभ मेले के आकर्षण
कुंभ मेले में अखाड़ों द्वारा किया जाने वाला शाही स्नान मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है। इस दौरान विभिन्न अखाड़ों की ओर से भव्य झांकी निकाली जाती है और प्रत्येक एक दूसरे से ज्यादा भव्यता दिखाना चाहता है। शाही स्नान करने जाते समय साधु-संत अपनी अपनी परंपरा अनुसार हाथी या घोड़े पर सवार होकर बैंड-बाजे के साथ या फिर राजसी पालकी में निकलते हैं। इस दौरान आगे-आगे नागाओं की फौज होती है और उसके पीछे महंत, मंडलेश्वर, महा मंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर होते हैं। इस बार पहला स्नान 15 जनवरी को और अंतिम 04 मार्च को पड़ रहा है। साधुओं के स्नान के बाद ही आम लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं। हिन्दू धर्म में अखाड़ों के शाही स्नान के बाद संगम में डुबकी लगाने का बड़ा धार्मिक महत्व है। कुंभ पर्व में आम श्रद्धालु एक से पांच बार डुबकी लगाता है, जबकि अखाड़ों के नागा तो एक हजार आठ बार तक नदी में डुबकी लगा जाते हैं।
क्या है कुंभ का महत्व ?
प्रत्येक बारहवें वर्ष त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाले पूर्ण कुंभ के बारे में पद्म पुराण में माना गया है कि इस दौरान जो त्रिवेणी संगम पर स्नान करता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। तीर्थों में संगम को सभी तीर्थों का अधिपति माना गया है…. इस संगम स्थल पर ही अमृत की बूंदें गिरी थी इसीलिए यहां स्नान का महत्व हैयहां स्नान करने से शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है…. यहां पर लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान भी करते हैंइस कुंभ की खास बात ये है कि ऐसा पहली बार हुआ है….जब यहां जुटे साधु- संतों नेदेहदान की घोषणा कर इस नई परंपरा की शुरुआत की है…..जो मानवता के कल्याण के लिए खास माना जाता है...इतना ही नहीं इससे पहले 13 अखाड़ों को ही पेशवाई का अधिकार था जिसमें किन्नर नहीं शामिल थे.... लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि,..इस बार किन्नर अखाड़ों की भी पेशवाई निकाली गई
कुंभ मेला दुनिया भर में होने वाले धार्मिक आयोजनों में सबसे बड़ा है....जहां पर इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं....कुंभ का पर्व हर 12 साल के अंतराल पर चारों में से किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है- हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में त्रिवेणी संगम जहां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं....
ज्योतिष के मुताबिक
 जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. प्रयाग का कुंभ मेला सभी मेलों में सर्वाधिक महत्व रखता है. कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुम्भ राशि का भी यही चिह्न है. कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है....ऐसा माना जाता है कि देवताओं.. और राक्षसों ने समुद्र के मंथन और उससे प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला किया....समुद्र मंथन से जो सबसे मूल्यवान रत्न अमृत निकला.... उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ... असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वह पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया....असुरों ने जब गरुड़ से वह पात्र छीनने की कोशिश की तो....उस पात्र में से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं....तभी से हर 12 साल के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभा मेला आयोजित किया जाता है... 12 साल का मान देवताओं का बारह दिन होता है....इसीलिए 12वें साल ही सामान्यतया हर स्थान में कुंभ पर्व की स्थिति बनती है...।।
कुंभ मेले का आयोजन वैसे तो हजारों साल पहले से ही हो रहा है...जानकारों के मुताबिक, मेले का पहला लिखित प्रमाण महान बौद्ध तीर्थयात्री हेवनेसांग के लेख में मिलता है....जिसमें छठवी शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासन में होने वाले कुंभ का प्रसंगवश वर्णन किया गया है.....अंतरजाल पर कुंभ से संबंधित इतिहास 600 साल ईसा पूर्व बौद्ध लेखों में मिलता है....साल 904 में निरंजनी अखाड़े के गठन के बाद 240 साल बाद सन 1146 में जूना अखाड़ा अस्तित्व में आया...फिर 1300 में राजस्थान सेना में कार्यरत कानफटा योगी साधु के उदय का उल्लेख मिलता है...1398 में हरिद्वार कुंभ में तैमूर की तरफ से हजारों श्रद्धालुओं का नरसंहार किया गया. इसका उल्लेख 1398 हरिद्वार महाकुंभ नरसंहार में विस्तार से उपलब्ध है.  1565 में मधुसूदन सरस्वती की और से दसनामी व्यवस्था की लडाका इकाईयों का गठन, जबकि 1675 में प्रणामी संप्रदाय के प्रवर्तक, महामति श्री प्राणनाथ जी विजयाभिनंद बुद्ध निष्कलंक घोषित किए गए….जब से ही हिंदू सनातन परंपरा में मकर संक्रांति का काफी महत्व माना जाता है...हिंदू धर्म में इस पर्व को आस्था, भक्ति और विश्वास के साथ मनाते हैं....इस बार मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी को पड़ी..जिसमें खास बात यह है कि, इसी दिन अर्ध कुंभ का पहला शाही भी है... इस वजह से इस दिन की धार्मिक  महत्ता और बढ़ गई है....।।
नांगा साधु
कुंभ में आने वाले नागा साधुओं की परीक्षा नहीं देखी तो समझो कुछ नहीं देखी...लेकिन ये नांगा साधू बनतो कैसे और कैसे होता इनका दिनाचार्य....और कैसे दी जाती है उन्हें दीक्षा तो आइए एक नजर इसपर भई डालते हैं....कैसा होता है नागाओं का जीवन-
अखंड भारत को खंडित करने के साथ धन-सम्पदा को नष्ट करने के लिए जब विदेशी आक्रमणकारी....भारत की धरती पर आने लगे तो, आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की.....उनका मानना था कि आक्रमणकारियों से निपटने के लिए पूजा-पाठ के साथ शारीरिक श्रम और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी साधुओं को मिलनी चाहिए....इसी मकसद से आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में 7 अखाड़ों की खुद स्थापना की....उन्होंने खुद महानिर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि और आनंद अखाड़े की स्थापना की....फिलहाल अखाड़ों की संख्या 13 हो गई है...अखाड़ों का एक नियम यह है कि नागा साधुओं को बस्ती के बाहर ही निवास स्थान खोजना होगा... संन्यासी के अलावा वह न किसी को प्रणाम करेगा....न ही किसी की निंदा करेगा.....दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को इसका पालन करना पड़ता हैं….संगमनगरी में लगे कुंभ में इन अखाड़ों की अजब-गजब दुनिया....देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है.....इन अखाड़ों में जूना अखाड़े का जलवा सबसे ज्यादा है....जूना अखाड़े के नागा साधु युद्ध कला में माहिर रहते हैं....
वीओ-2
नागा साधु बनने की प्रकिया से लेकर ढेरों जानकारियां है....किसी को नागा साधु की दीक्षा लेने से पहले खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है....पिंडदान व श्राद्ध के बाद गुरु जो नया नाम और पहचान देता है, उसी नाम से जाना जाता है....नागा साधु की दीक्षा देने से पहले उसके खुद पर नियंत्रण की स्थिति को परखा जाता है.....तीन साल तक दैहिक ब्रह्मचर्य के साथ मानसिक नियंत्रण को परखने के बाद ही नागा साधु की दीक्षा दी जाती है....हिंदू धर्म के किसी भी जाति का कोई व्यक्ति नागा साधु बनने की प्रक्रिया और परीक्षा पास करने के बाद नागा साधु बन सकता है... दूसरे धर्म का कोई भी व्यक्ति नागा साधु नहीं बन सकता है.....नागाओं को एक दिन में एक ही समय भोजन करना होता है.....वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है.....एक नागा साधु को सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है...अगर सात घरों से भिक्षा ना मिले, तो भूखे रहना पड़ता है...वहीं केवल धरती पर ही सोना होता है....नागा साधु की दीक्षा के दौरान साधक को वस्त्र त्याग करने के साथ चोटी का भी त्याग करना होता है.... वस्त्र के नाम पर भस्म व रुद्राक्ष धारण करने की अनुमति होती है..... वस्त्र अगर धारण करना होता है तो सिर्फ गेरुए रंग का एक वस्त्र ही धारण किया जा सकता है..।।
प्रमोद शर्मा

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