Makar Sankranti 2022: गोरखपुर में सज रहा है बाबा गोरखनाथ का दरबार ,उनसे जुडी है खिचड़ी (Khichadi) चढाने की अद्भुत कथा
बाबा गोरक्षनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उनको आदियोगी भी कहते हैं। स्थानीय लोग बाबा गोरक्षनाथ को बाबा गोरखनाथ कहते हैं, उनके नाम पर ही गोरखपुर शहर का नाम और गोरखनाथ मंदिर का नाम रखा गया है। वैसे तो सालो भर गोरखनाथ मंदिर (Gorakhnath Mandir) में भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन मकर संक्रांति के समय का नजारा तो कुछ और ही होता है। बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा है और यह परम्परा मां ज्वाला देवी से जुड़ी हुई है। गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर। इसे नाथ पीठ (गोरक्षपीठ) का मुख्यालय भी माना जाता है। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पीठ के पीठाधीश्वर हैं। मंदिर परिसर में मकर संक्रांति के दिन से महीने भर तक चलने वाला खिचड़ी मेला यहां का प्रमुख आयोजन है। इसका शुमार उत्तर भारत के बड़े आयोजनों में होता है। इस दौरान उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल और अन्य जगहों से लाखों लोग गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने यहां आते हैं। भक्त खिचड़ी चढ़ाते हैं और प्रसन्न होकर घर लौटते हैं। मकर संक्रांति के दिन भक्त और भगवन का यह खेल अद्भुत नजारा पेश करता है। परम्परा के मुताबिक बतौर पीठाधीश्वर पहली खिचड़ी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चढ़ाते हैं। इसके बाद नेपाल नरेश की ओर से भेजी गई खिचड़ी चढ़ती है। इसके बाद बारी आम लोगों की आती है। बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता है कि त्रेता युग में सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ भिक्षाटन करते हुए हिमाचल के कांगड़ा जिले के ज्वाला देवी मंदिर गए।
भिक्षाटन करते हुए गोरखपुर पहुंचे गोरक्षनाथ
यहां देवी प्रकट हुई और गुरु गोरक्षनाथ को भोजन का आमंत्रित दिया। वहां तामसी भोजन देखकर गोरक्षनाथ ने कहा, 'मैं भिक्षाटन में मिले चावल-दाल को ही ग्रहण करता हूं।' इस पर ज्वाला देवी ने कहा, 'मैं चावल-दाल पकाने के लिए पानी गरम करती हूं। आप भिक्षाटन कर चावल-दाल लाइए। गुरु गोरक्षनाथ यहां से भिक्षाटन करते हुए हिमालय की तराई स्थित गोरखपुर पहुंचे।'
इस तरह शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा
उस समय इस इलाके में घने जंगल थे। यहां उन्होंने राप्ती और रोहिणी नदी के संगम पर एक मनोरम जगह पर अपना अक्षय भिक्षापात्र रखा और साधना में लीन हो गए। इस बीच खिचड़ी का पर्व आया। एक तेजस्वी योगी को साधनारत देख लोग उसके भिक्षापात्र में चावल-दाल डालने लगे, पर वह अक्षयपात्र भरा नहीं। इसे सिद्ध योगी का चमत्कार मानकर लोग अभिभूत हो गए। उसी समय से गोरखपुर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा जारी है।
नेपाल-बिहार से भी आते हैं लोग
इस दिन हर साल नेपाल-बिहार और पूर्वांचल के दूर-दराज इलाकों से श्रद्धालु गुरु गोरक्षनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। पहले वे मंदिर के पवित्र भीम सरोवर में स्नान करते हैं। खिचड़ी मेला माह भर तक चलता है। इस दौरान के हर रविवार और मंगलवार का खास महत्व है। इन दिनों मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मालूम हो कि भारत में व्रतों और पर्वों की लंबी और विविधतापूर्ण परंपरा है। इनमें मकर संक्रांति का खास महत्व है। यह मूल रूप से सूर्योपासना का पर्व है।
व्यवसाय की दृष्टि से भी है मेले का महत्व
गोरखपुर के खिचड़ी के मेले का एक विशेष महत्व है। खिचड़ी के मेले में भारत के अन्य राज्यों के अलावा पड़ोसी देश नेपाल के लोग भी मेले का लुत्फ उठाने के लिए बड़ी तादाद में पहुंचते हैं। यही नहीं व्यवसाय की दृष्टि से भी यह मेला बेहद खास होता है। एक महीने तक लगने वाले इस मेले में कई राज्यों के स्टॉल्स लगते हैं। इनसे लोगों को रोजगार मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और काला तिल, तिल के लड्डू, अनाज, गुड़, सब्जी आदि का दान करते हैं। मकर संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव का दक्षिणायन से उत्तरायण होने का क्या है?
सूर्य का उत्तरायण और दक्षिणायन
सूर्य देव जब उत्तरायण होते हैं, तो उस समय से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है। इस समय में शुभ कार्यों का होना ज्यादा फलित माना जाता है। दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि मानी जाती है. उत्तरायण और दक्षिणायन एक साल में दो संक्रांति हैं। सूर्य जब उत्तरायण होते हैं, तो सूर्य की तपिश बढ़ती है, गर्मी का मौसम प्रारंभ होता है।
सूर्य जब दक्षिणायन होते हैं, तो सर्दी प्रारंभ होती है। मौसम ठंडा होना शुरु हो जाता है। उत्तरायण को सकारात्मकता और दक्षिणायन को नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। उत्तरायण से दिन की अवधि लंबी और रात छोटी होने लगती है, वहीं दक्षिणायन में रात लंबी और दिन छोटे होते हैं।
उत्तरायण में सूर्य मकर राशि से प्रवेश करके कर्क राशि की ओर गति करते हैं और दक्षिणायन में सूर्य की गति कर्क राशि से मकर की ओर होती है। सूर्य जब उत्तरायण होते हैं, तो वे मकर से अगली 6 राशियों में लगभग एक एक माह रहते हैं, जिससे 6 माह का समय व्यतीत हो जाता है। ऐसे में सूर्य देव 6 माह के लिए उत्तरायण होते हैं।जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं तो कर्क से अगली 6 राशियों में क्रमश: एक-एक माह रहते हैं। ऐसे दक्षिणायन में सूर्य देव 6 माह तक रहते हैं. तो एक वर्ष 6 माह उत्तरायण और 6 माह दक्षिणायन से पूर्ण होता है।
पितामह भीष्म ने की थी उत्तरायण की प्रतीक्षा
उत्तरायण से जुड़ी धार्मिक मान्यता भी है. महाभारत के युद्ध के समय जब भीष्म पितामह को प्राण त्यागने होते हैं, तो वे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते हैं। तक तक वे रणभूमि में बाणों की शैय्या पर लेटे रहते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने पर वे अपने प्राण त्यागते हैं। ऐसी मान्यता है कि उत्तरायण में जिनके प्राण निकलते हैं, उनको मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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