ब्राह्मणवाद की जड़े गहरी, हिंदू कोई धर्म नहीं, Swami Prasad Maurya के बयान पर फिर गरमाई सियासत पढिये मौर्या का हिन्दू विवाद गाथा
सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्या एक बार फिर से देश की सनातनी परंपरा पर हमलावर हैं। उनकी ये हमला बेसक राजनीतिक हो क्योंकि चुनावी लाभ लेने के लिए तो नेता लोग कुछ कहने और बोलने से बाज नहीं आते। लगता है मौर्या ने धर्म और सनातन परंपरा पर हमला करके ही नयी राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। इस कोशिश में उन्हें कितना लाभ मिलेगा। उनकी पार्टी को कितना जान समर्थन मिलेगा यह तो कोई नहीं जानता लेकिन डर इस बात की भी है कि हिन्दू और सनातनी परम्परा पर हमला करते -करते कही मौर्या सपा को ही कही बदनाम नहीं कर दे। और ऐसा कुछ हुआ तो तो हानि मौर्या की नहीं होगी ,सपा की राजनीति बदनाम भी होगी और कमजोर भी।
भारत सर्व धर्म समभाव वाला देश है। यहाँ सभी धर्मो के लोग प्यार और सम्मान के साथ रहते हैं। बहुतायत हिन्दुओं की है और इस देश में करीब 85 फीसदी लोग हिन्दू और सनातनी परम्परा को ही मानते हैं और और उसी परमपरा में जीते भी है। भगवान् ,,ईश्वर ,पूजा ,मंत्र ,यज्ञ ,तप योग ,साधना ,कीर्तन ,उपासना और भक्ति ,शक्ति की कहानी हिन्दू धर्म की परमपरा है और जीवन का आधार भी। जो इस परमपरा में जीते हैं वे भी और नहीं जीते हैं वे भी इस परम्परा से दूर होना नहीं चाहते। भला हिंदुत्व को कोई कैसे चीड़ दे। भगवान् की भक्ति को कोई कैसे त्याग दे और साधना और उपासना से कोई कैसे वंचित हो जाए ! पंडित ,पांडित्य और धर्म ज्ञान में भले की कई तरह की खामियां आयी हो लेकिन सनातन जीवन तो सादा जीवन उच्च विचार पर आधारित है। इस मार्ग को अपनाने वाले कोई भी लोग कभी अशांत नहीं होते। यह सनातन तो शांति का मार्ग है। भला इस मार्ग में खोट कैसा ?
स्वामी प्रसाद मौर्या विवादों में रहने के आदि होते जा रहे हैं। लगत है कि उनकी राजनीति आगे नहीं बढ़ रही है इसलिए खुद को चर्चा में बने रहने के लिए धर्म का सहारा ले रहे हैं। इस देश में बहुत से नेताओं की पहचान ही धर्म के नाम पर हुई है। हालांकि इनकी संख्या अभी बहुत ही काम है लेकिन धर्म को बेचकर या धर्म को बदनाम करने की परिपाटी नेताओं में कुछ ज्यादा ही है। सत्य तो यह है कि धर्म को राजनीति से अलग रखना चाहिए। धर्म आस्था का विषय है और आस्था पर कोई सवाल नहीं उठता। जो सवाल उठाते हैं वे कही के नहीं रहते। जिस सनातनी परम्परा को लोग मानते आ रहे हैं बदलाव भी नहीं किये जा सकते। ऐसे में मौर्या जो कहते सुने जाते हैं ,खुद ही आलोचना के शिकार हो जाते हैं।
मौर्या पहले रामचरित्रमानस को लेकर चर्चा में आये थे। उनके कटुता पूर्ण बयान की काफी आलोचना की गई थी। लगा था कि अब उनको सद्बुद्धि आ जाएगी। लेकिन उन्होंने फिर वही किया। उन्होंने एक वीडियो ट्वीट में कहा है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म है ही नहीं। हिन्दू धर्म केवल एक धोखा है। सही मायने में जो ब्राह्मण धर्म हैं उसे ही हिन्दू धर्म कहकर देश के आदिवासियों ,दलितों और पिछड़ों को धार्मिक मकड़जाल में फंसाने की एक साजिस है। अपने इसी वीडियो में मौर्या कहते हैं कि ब्राह्मणवाद की जेड काफी गहरी है और समाज में सभी विषमता की जड़ भी यह ब्राह्मणबाद है।
स्वामी प्रसाद मौर्या दरसल जो कह रहे हैं वह अर्ध सत्य के सामान है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी धर्म के नाम पर बहुत सी ऐसी परम्पराएं थो दी जाती है जो समाज को विखंडित कर देती है। हो सकता है हिन्दू या सनातन धर्म में भी कुछ इस तरह की विसंगतियां हो। हो सकता है कि जिस ब्राह्मण समाज पर वे कई तरह के लांछन लगा रहे उसमे अर्ध सत्य की बू भी आती हो लेकिन क्या सभी ब्राह्मणो को आप एक ही तराजू में कैसे तौल सकते हैं। इस समाज के कई ब्राह्मणो ने ही समाज को दिशा देने का काम किया है ,भक्ति मार्ग को आगे बढ़ाया है ,शांति के मार्ग को सुगम किया है और इस ब्राह्मण ने देश को एक धार्मिक वातावरण में बांधकर आजादी की लड़ाई को भी आगे बढ़ाया। आज जिस भारत माता की बात हम करते हैं अगर ब्राह्मणो ने भक्ति के मार्ग और अपनी माता के प्रति भक्ति की भावना को नहीं जगाया होता तो आज समाज कहाँ होता कोई नहीं जानता।
इसलिए हिन्दू धर्म या फिर सनातनी परंपरा केवल ब्राह्मणो द्वारा रची कोई पाखंड नहीं है। यह तो जीवन शैली है जो ष्यन्ती और सद्भाव को आगे बढ़ाती है। हो सकता है इसमें कई ब्राह्मण कर्मकांड दिखाई पड़ते हों लेकिन इसी देश के ब्राह्मण पंडित और विद्वानों ने समाज की बुराइयों की भर्त्स्ना की है ,समाज को आगे वबढ़ाने और समाज के सभी जाति धर्मो के लिए आंदोलन चालये हैं ,शायद ही किसी देश में देखने को मिलते हों।
स्वामी प्रसाद मौर्या ने ये बाते क्यों कही और और क्यों विडिओ जारी किये ऐन यह उनकी अपनी मान्यता हो सकती है लेकिन सपा के भीतर भी मौर्या के इस वीडियो पर वभावाल मचा हुआ है। क्योंकि सपा भी अन्य दलों की तरह ही वोट की राजनीति करती है और उनके साथ भी जो वोटर जुड़े हुए हैं वे भी किसी न किसी धर्म से जुड़े हुए हैं। सपा भी ब्राह्मणवाद के खिलाफ हो सकती है लेकिन ब्राह्मण को राजनीति से अलग नहीं कर सकती। ब्राह्मणवाद और ब्राह्मण में काफी अंतर है। अगर समाज में कोई ढोंग ,पोंगा पंथी ,अंध विश्वास का वातावरण फैलाता है तो वह ब्राह्मणवाद का आंग हो सकता है लेकिन ब्राह्मण समाज को हमेशा राह ही दिखाता आया है।
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