जाटलैंड में बदलता रहा जनता का मूड
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जाटलैंड में बदलता रहा जनता का मूड
अजीत सिंह और बालियान के बीच मुकाबला
सत्ता के
संग्राम की सियासी तस्वीर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को बदलती दिख रही है... इस जाटलैंड
में जनता का मूड बदलता रहा है...क्योंकि यहां टक्कर सीधी अजीत सिंह और बालियान के
बीच है...जाटलैंड कहे जाने
वाले मुजफ्फरनगर से गठबंधन
की तरफ से जहां आरएलडी
प्रमुख चौधरी अजीत सिंह मैदान में है..वहीं बीजेपी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव
बालियान पर एक बार फिर भरोसा जताया है... और उन्हें फिर मैदान में उतारा है....वहीं, शिवपाल की
पार्टी यानि राष्ट्रीय सकुलर मोर्चा की तरफ से ओमवीर सिंह मैदान में है...जबकि, कांग्रेस
पहले ही यहां से प्रत्याशी उतारने से इंकार कर चुकी है...ऐसे में सीधा मुकाबला
अजीत सिंह और संजीव बालियान के बीच है..।।
ये वहीं मुजफ्फरनगर है जो साल 2013 में दंगे का दंश
झेला चुका है...तब प्रदेश में एसपी और केंद्र में कांग्रेस की सरकार
थी....1998 के चुनाव के बाद
2014 में मोदी लहर और
दंगों का ऐसा असर था कि,...बीजेपी ने यहां से बड़ी जीत दर्ज की....90 के दशक में राम मंदिर
निर्माण के मुद्दे ने भी इस सीट पर परिवर्तन का कमल खिलाया था...।।
1991 में हुए चुनाव में यहां
पहली बार बीजेपी ने जीत दर्ज की...उसके बाद फिर 1996 और फिर 1998 के लोकसभा चुनाव
में भी यहां बीजेपी ने जीत दर्ज की.. 1999 में हुए चुनाव में
कांग्रेस ने बीजेपी से यह सीट छीन ली..।।
आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए आम
चुनाव में कांग्रेस के हीरा त्रिपाठी बल्लभ चुनाव जीते....इसके
बाद 1962 तक ये सीट
कांग्रेस के खाते में ही रही इसके बाद 1967 और 71 में दो बार कम्युनिस्ट
पार्टी ऑफ इंडिया ने जीत दर्ज की....1977, 80 के चुनाव में यह सीट कम्युनिस्ट पार्टी से
छिनकर लोकदल के हाथों में चली गई....1984 में कांग्रेस और 1989 में जनता दल के
खाते में रही
2004 के चुनाव में जहां
कांग्रेस पार्टी ने पूरे देश में बेहतर प्रदर्शन किया... वहीं इस सीट पर क्षेत्रीय पार्टियों का असर देखने को मिला...2004 में एसपी के
चौधरी मुनव्वर हसन और 2009 में बीसपी के उम्मीदवार कादिर राणा ने जीत दर्ज
की....
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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की आजमगढ़
लोकसभा सीट पर एक बार फिर हाई प्रोफाइल सियासी रणभूमि बन रही है. मुलायम सिंह यादव
की विरासत बचाने के लिए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद ही मैदान में
उतरने का फैसला लिया है. जबकि बीजेपी ग्लैमर तड़का के सहारे जीत की आस लगा रही है.
ऐसे में बीजेपी ने भोजपुरी स्टार दिनेश लाल यादव (निरहुआ) को अखिलेश के सामने
आजमगढ़ सीट से उतार कर मुकाबला बेहद दिलचस्प बनाने की
कोशिश की है
----निरहुआ कैसे देंगे चुनौती ? --------
सपा-bsp
- RLD गठबंधन के नाते अखिलेश यादव के
पक्ष में इन दिनों आजमगढ़ में जिस प्रकार 'लाठी-हाथी और 786 एक साथ चलेंगे' के नारे सुनाई दे रहे हैं. इस
नारे का इशारा यादव, दलित और
मुस्लिमों से है. ऐसे में निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश के खिलाफ कैसे चुनौती दे
पाएंगे. हालांकि निरहुआ खुद भी यादव समुदाय से आते हैं, लेकिन आजमगढ़ के यादव समुदाय के
कद्दावर नेता और पूर्वा सांसद रमाकांत यादव जिस तरह से अखिलेश के खिलाफ चुनाव
लड़ने से इनकार कर चुके हैं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि निरहुआ आजमगढ़ में कमल कैसे
खिला पाएंगे?
-----मुलायम के शिष्य रमाकांत ने छोड़ा मैदान-----
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव
अपनी परंपरागत मैनपुरी सीट के साथ आजमगढ़ से चुनावी रण में उतरे थे. हालांकि तब
उन्हें मैनपुरी में कोई दिक्कत नहीं हुई थी. लेकिन आजमगढ़ में कभी मुलायम के ही
शागिर्द रहे रमाकांत यादव ने अपने गुरु को कड़ी टक्कर दी थी, जीत के लिए मुलायम को काफी मशक्कत
करनी पड़ी थी.
आजमगढ़ में पिछले लोकसभा चुनाव
में मुलायम को 3,40,306 वोट मिले थे. बीजेपी को रमाकांत यादव को 2,77,102 वोट मिले और बसपा के गुड्डू जमाली
को 2,66,528 वोट मिले थे. इस तरह से बीजेपी और सपा के बीच हार-जीत का अंतर सिर्फ 63,204 वोटों का था.
सपा-बसपा और आरएलडी मिलकर चुनाव मैदान
में हैं. इसका अखिलेश यादव जहां फायदा उठाने के बेकरार है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी
अब यहां निरहुआ के जरिए यादव के साथ-साथ बसपा के परंपरागत मतदाताओं के बीच बिखराव
पर नजर लगाए हुए है.
आजमगढ़ में यादव, मुस्लिम और दलित समुदाय की आबादी
ज्यादा है.
गैर-यादव ओबीसी की तादाद भी अच्छी खासी है, जो पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में
बीजेपी के साथ थे…इसी का नतीजा है कि आजमगढ़ सीट के तहत आने वाली पांच में से
किसी भी सीट पर बीजेपी नहीं जीत सकी थी. जबकि गोपालपुर, आजमगढ़ और मेहनगर में सपा सगड़ी
और मुबारकपुर में बीएसपी का कब्जा है.
दिलचस्प
बात ये है कि अब बीजेपी
निरहुआ के जरिए अखिलेश को घेरने की कवायद कर रही है, लेकिन जिस तरह से जातीय और राजनीतिक
समीकरण हैं. उस लिहाज से बीजेपी के लिए ये सीट जीत पाना आसान नहीं नजर आ रही है।
तो चलिए देखते है की अखिलेश के सामने निरहुआ किस सियासी डायलॉग से आवाम का दिल जीत
पाते है या फिर उनकी ये पहली सियासी फिल्म अखिलेश अपने रंग से फ्लॉप करवा देंगे ।
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बाइट जया प्रदा
रोने वाली
वीओं 1.. ये
किसी फिल्म का सीन नहीं है जहां डायरेक्टर ने बोला रोल कैमरा और एक्शन और जया रोने
लगी । दरअसल ये सियासत की वो स्क्रिप्ट है जो रामपुर की धरती पर आंसूओं का सैलाब
ले आई, बोलते
बोलते जया फुट फुटकर रोने लगी ।
बाईट जया प्रदा
आपना दर्द बयां
करते हुए जया की आंखे छलक आई , रामपूर से अपनी दूर की मजूबरी की दास्तान सुनाते
सुनाते जया फूट फूट कर रोने लगी ,जनता के सामने जया के आंसू बहने लगे तो सियासत
में सवाल उठने लगे कि क्या जया के आंसूओं का सैलाब उनके विरोधी आजम खान को डूबाने
के लिए काफी है । खैर कुछ भी हो जया का जलवा, इमोश्नल अत्याचार की ऐसी बानगी बना कि कार्यकर्ताओं की भीड़ उनका मनोबल बढ़ाने
से खुद को रोक नहीं पाई और जया जी हम तुम्हारे साथ हैं के नारे लगाने लगे ।
बाईट जया की जिसमें कार्यकर्ताओं के नारे है ।
वीओं - बीजेपी ने रामपुर से जया को अपना
उम्मीदवार बनाया है सामने उनके पुराने दुश्मन आजम खान है, महागठबंधन से उम्मीदवार आजम खान है। वैसे
जया प्रदा के लिए रामपुर की सियासी जमीन कोई नई नहीं है । वो दो बार रामपुर की
सांसद बन चुकी है मगर इस बार उनका सियासी चोला बदल गया है अब रामपुर की सुपर फाइट
पर सबकी नजर है । ऐसे में इस सियासी फिल्म है एक्शन भी है इमोश्नल भी है और ड्रामा
भी है यानि फूलटू सियासी मसला ।
चुनाव में आपने
बड़े बड़े स्टार प्रचारकों का अंदाज देखा होगा मगर ऐसा वोट मंगाने का अंदाज न सुना
होगा न ही देखा होगा । एक सांस में इतने कमल खिला गए जनाब, कि इनकी सांसे
ही फूल गई मगर मजाल है कि कमल के नाम की माला बीच में ही छोड़ देते । ऊफ मेरठ के
मंच पर मौजूद सभा में मौजूद जिसने नेता जी विनीत अग्रवाल शारदा के अंदाज को देखा वो दंग ही रहे गया
।
बाईट ...कमल
कमल वाली बाइट, विनीत अग्रवाल शारदा
वीओं ..खैर ये लोकसभा चुनाव की ये अभी शुरुआत भर है न जाने कितने चुनाव के रंग अभी देखने
को मिलेंगे। जहां सियासत के सितारें लोगों का दिल जीतने के लिए क्या कुछ नहीं
करेंगे। तभी तो किसी ने क्या खूब कहां है कि राजनीति के रंग अनेक कभी काला तो कभी
सफेद…।।
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