रूस ,चीन और नेपाल की राजनीतिक बयारें बहुत कहती है
भू -राजनीति कभी -कभी सफल भी होती है तो कभी ढेर भी हो जाती है। पूरी दुनिया में जहां भी भूराजनीति जारी है ,वहां की जनता तो परेशान है ही, सरकारें भी अशांत हैं। अशांत सरकारें जनता के खिलाफ चली जाती है और परिणाम ये होता है कि या तो जनता उस सरकार को गिरा देती है या फिर सरकार के मुखिया को अपदस्त। रूस -यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के भीतर जो कुछ भी होता दिख रहा है वह मामूली नहीं है। रूस के एक युद्ध विश्लेषक और पूर्व वफादार इगोर स्ट्रेलकोव ने कहा कि व्लादिमीर पुतिन को उखाड़ फेंकने और उनका ताज हथियाने की दौड़ जारी है। पुतिन के साथ आगे क्या होगा और रूस की दशा क्या होगी यह कोई नहीं जानता। यूक्रेन भी तबाही के कगार पर है। यूक्रेनी जनता आगे किस हालत में होगी यह भी भला कौन जाने ! उधर नेपाल में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। दुनिया में घट रही कई घटनाओं में से एक यूक्रेन -रूस विवाद आज सबसे ज्यादा सुर्ख़ियों में है। वैसे भारत -चीन विवाद भी कुछ कम नहीं है लेकिन सच तो यही है कि भारत के लोभी लोग चीनी सीमा विवाद से परे जाकर खुद के विवाद और लाभ पर ज्यादा फोकस हैं। अंजाम तो भारत और चीन के बीच भी बदतर हो होने हैं लेकिन सबसे पहले रूस और पुतिन की कहानी तो जान लें।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, रुसी युद्ध विश्लेषक स्ट्रेलकोव ने कहा, पुतिन को घेरने वाले समूहों के बीच राजनीतिक लड़ाई शुरू हो गई है। स्ट्रेलकोव- पूर्व एफएसबी कर्नल, पुतिन के समर्थक थे, अब कट्टर आलोचक है। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने दावा किया कि यूक्रेन में युद्ध में हार और बदनामी से बचने के लिए पुतिन 5 लाख से अधिक पुरुषों को जमा कर सकते हैं। उन्होंने इस दावे के बीच कहा कि पुतिन ने सैद्धांतिक रूप से विशाल नए लामबंदी अभियान को मंजूरी दे दी है।
अन्य लोगों का मानना है कि पूर्व एफएसबी प्रमुख निकोलाई पेत्रुशेव- शक्तिशाली सुरक्षा परिषद के सचिव- के आसपास के सुरक्षा अधिकारी शासक मंडली को बचाने के लिए कुछ कर सकते हैं, अगर युद्ध जारी रहता है। डेली मेल ने बताया कि कुछ लोगों का दावा है कि सुरक्षा ब्लॉक उनके बेटे और कृषि मंत्री दिमित्री पेत्रुशेव को पुतिन की जगह तख्तापलट के लिए मोर्चे के रूप में तैयार कर रहा है, अगर उन्हें युद्ध के झटकों या खराब स्वास्थ्य के लिए मजबूर किया जाता है। रूस का क्या होगा और पुतिन की कहानी कैसी होगी इसकी कल्पना ही की जा सकती है। लेकिन इतना तय हो है कि यूक्रेन और उसके सहयोगी देश खासकर अमेरिका ने रूस को तबाह करने की पूरी योजना बना ली है। लेकिन असली निशाना तो पुतिन हैं। पुतिन अगर तख्तापलट के शिकार होते हैं या फिर उनके अनहोनी घटनता घटती है तब दुनिया के भीतर की राजनीति क्या होगी इस पर भी गौर करने की बात है। अब एक नजर चीन और नेपाल के बीच चल रही रार पर भी डाल लें। नेपाल में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि काठमांडू में चीनी दूतावास ने घोषणा की है कि, पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा 'चीन-नेपाल बीआरआई सहयोग की प्रमुख परियोजना' है। हवाई अड्डे को बीआरआई से जोड़ते हुए चीनी दूतावास द्वारा की गई घोषणा से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। हवाई अड्डे का निर्माण चीनी ऋण पर किया गया था जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने रविवार को किया, लेकिन उद्घाटन के दिन दूतावास द्वारा अचानक की गई घोषणा ने काठमांडू में विवाद बढ़ा दिया है। चीन के इस खेल से नेपाल दंग है और भारत चौकस .भारत की निगाह चीन की हर पैतरेबाजी पर है और चीन नेपाल में जो कुछ भी करता दिख रहा है उसका असर भारत से भी जुड़ा है। भारत सतर्क तो है ही नेपाल को भी सतर्क कर रहा है। चीन के हालिया खेल का अंजाम क्या होगा अभी देखना बाकी है लेकिन भारत सरकार इस पुरे खेल को गम्भीरत से देख रही है। बता दें कि हवाई अड्डा उद्घाटन से एक दिन पहले, दूतावास ने कहा: यह चीन-नेपाल बीआरआई सहयोग की प्रमुख परियोजना है। नेपाली सरकार और नेपाली लोगों को हार्दिक बधाई! उद्घाटन के दिन, चार्ज डी अफेयर्स वांग शिन ने कहा: 2023 राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीआरआई पहल के प्रस्ताव की 10वीं वर्षगांठ है। दोनों राष्ट्राध्यक्षों के मार्गदर्शन में, हम संयुक्त रूप से ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क का निर्माण करेंगे, और बीआरआई सहयोग को फलदायी परिणाम देंगे।
कर्ज में डूबा नेपाल अभी कुछ भी कहने की हालत में नहीं है। वैसे भी नेपाल की नयी ओली और प्रचंड की गठबंधन वाली सरकार भारत से ज्यादा चीन के नजदीक है लेकिन क्या नेपाली समाज भी कुछ ऐसा ही समझता है ,कहा नहीं जा सकता। अगर चीन के खेल को नेपाली लोग समझ गए तो पडोसी देश में बड़ा खेला होगा और भारत भी इस खेला का अंग बन जाएगा। फिलहाल तो कहानी यही है कि चीन अब नेपाल के भीतर घुस गया है और कर्ज में डूबा नेपाल चीन से आँख कैसे मिला सकता है !
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