एक ऐसे संत जिसके सामने सभी धर्मालम्बी मुस्कुराने लगे

क्या आप कथावाचक ,कृष्ण उपासक और सनातनी देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan Thakur) को जानते हैं ? अवश्य जानते होंगे। उनकी कथाये सुनी होंगी और उनके सनातनी जीवन शैली के मुरीद हुए होंगे। मथुरा,वृन्दावन (Mathura Vrindavan) में रहने वाले ठाकुर जी विदेशों में जाकर भी सनातनी संस्कृति (Sanatani culture) का विस्तार करते हैं और इस वैज्ञानक युग में भी अपने तर्कों और साक्ष्य के जरिये जो धर्म को नहीं मंटा है उसके भीतर भी धार्मिक आस्था का अंकुरण कर देते हैं। देवकी नंदन ठाकुर जी का प्रभाव ही कुछ ऐसा है कि राजनीति से जुड़े लोग भी उनकी तरफ खींचे चले आते हैं। बीजेपी (Bjp) जैसी पार्टी का कुछ ख़ास लगाव ऐसे धार्मिक संतों से कुछ ज्यादा ही है। यह बात और है कि संतो की कोई जाति और पार्टी नहीं होती लेकिन जिस धर्म को संत समाज जीता है उस धर्म को आगे बढ़ाने में उसकी रूचि ज्यादा होती है। चुकी बीजेपी (BJP) अपने को हिन्दू धर्म (Hindu Dharm) के ज्यादा पास होने की बात करती है यही वजह है संत समाज और सनातनी संतों के प्रति उसकी आस्था भी बढ़ती गई है। वैसे देवकीनन्दन ठाकुर जी का सानिध्य सभी को मिलता है और सभी दलों के लोग उनके अमृतवाणी का लाभ उठाने से नहीं चूकते। देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan thakur) आधुनिक समय में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। भारत में जितने धर्मालम्बी हैं ,वे सभी ठाकुर जी के पास जाते हैं। उनको सुनने वालों में हिन्दू हैं तो मुसलमान भी। सिख हैं टी ईसाई भी। जैनी हैं तो बौद्ध भी। वे विज्ञान की बातें भी करते हैं तो धरम आचरण पर चल कर कैसे सुख शांति ग्रहण करें इस पर भी गहन चिंतन करते हैं। वे समाज निर्माण की बात भी करते हैं और राष्ट्र सेवा सर्वोपरि का ज्ञान भी देते हैं। वे सनातनी परम्परा को आगे बढ़ाते हैं तो अन्य धर्मलम्बी लोगों की राह को भी सरल बनाते हैं। भारत में साधू संतों और कथा वाचकों की कोई कमी नहीं है। देश के पार दुनिया में भी भारतीय कथावाचकों की खास पहचान है। पिछले कुछ सालों में सनातनी धर्म और संस्कृति को दुनिया भर में फैलाने में जिन संतो की बड़ी भूमिका रही है उनमे देवकीनंदन ठाकुर सबसे ऊपर माने जाते हैं। हम ठाकुर जी पर कुछ और बाते करेंगे और इनके ईश्वर प्रेम से आपका परिचय भी कराएँगे लेकिन सबसे पहले कुछ सनातन धर्म पर एक नजर डालने की जरूरत है। पढ़े:महंत ‘यति नरसिंहानंद’ सरस्वती (Mahant 'Yati Narasimhanand') का सनातन प्रेम अद्भुद है
राजनीति और धर्म वैसे तो एक दूसरे से भिन्न है और खासकर आधुनिक वैज्ञानिक युग में राजनीति के साथ धर्म का घालमेल फिट नहीं बैठता। लेकिन जब इंसान का आचरण और जीवन शैली पतन की ओर जाने लगता है तो सदा धर्म की ही याद आती है। वैसे धर्म की जो इंसान को जीवन जीने की कला सिखाये। आपसी प्रेम का राह दिखाए और विश्व बंधुत्व की भावना से इंसान को लैश करे। धर्म कोई पाखंड नहीं है। पाखंड तो वह है जो जिसके जाल में फसकर गलत राह पर चल पड़े। जो धर्म इंसान को प्रगति का मार्ग दिखाए और शांति ,सुख के साथ ही जीने की कला बताये वह धर्म नहीं ,वह तो सामाजिक विज्ञानं की तरह है जिसमे आनद की प्राप्ति के साथ ही जीवन के राह सरल हो जाते हैं। सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।सनातन धर्म मूलतः भारतीय धर्म है, जो किसी समय पूरे बृहत्तर भारत तक व्याप्त रहा है।सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहा जाता है और इसका 6000 साल का इतिहास हैं। इतिहासकारों के एक दृष्टिकोण के अनुसार इस सभ्यता के अन्त के दौरान मध्य एशिया से एक अन्य जाति का आगमन हुआ, जो स्वयं को आर्य कहते थे और संस्कृत नाम की एक हिन्द यूरोपीय भाषा बोलते थे। एक अन्य दृष्टिकोण के अनुसार सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग स्वयं ही आर्य थे और उनका मूलस्थान भारत ही था। सच क्या है इस पर आज भी विवाद है। प्राचीन काल में भारतीय सनातन धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे। गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु की, शैवदेव, कोटी शिव की, शाक्त शक्ति की और सौर सूर्य की पूजा आराधना किया करते थे। पर यह मान्यता थी कि सब एक ही सत्य की व्याख्या हैं। यह न केवल ऋग्वेद परन्तु रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों में भी स्पष्ट रूप से कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के समर्थक अपने देवता को दूसरे सम्प्रदायों के देवता से बड़ा समझते थे और इस कारण से उनमें वैमनस्य बना रहता था। एकता बनाए रखने के उद्देश्य से धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान हैं, विष्णु, शिव और शक्ति आदि देवी-देवता परस्पर एक दूसरे के भी भक्त हैं। उनकी इन शिक्षाओं से तीनों सम्प्रदायों में मेल हुआ और सनातन धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म में विष्णु, शिव और शक्ति को समान माना गया और तीनों ही सम्प्रदाय के समर्थक इस धर्म को मानने लगे। सनातन धर्म का सारा साहित्य वेद, पुराण, श्रुति, स्मृतियाँ, उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता आदि संस्कृत भाषा में रचा गया है। समय के साथ बहुत कुछ बदला ,लोगों का जीवन बदला तो समझने की शक्ति भी। धर्म को लेकर अलग -अलग व्याख्याएं भी हुई। मुस्लिम काल में सनातन धर्म का लोप भी हुआ लेकिन कहते हैं कि जिसकी जड़े मजबूत होती है ,उसे भला कौन ख़त्म कर सकता है। बाद के वर्षों में देश के साधु -संतो और धर्म रक्षकों ने फिर से सनातन धर्म को जीवंत किया। इस कड़ी में तुलसीदास सबसे आगे रहे। तुलसी दास ने धार्मिक ग्रंथो के जरिये सनातन धर्म की रक्षा में बड़ी भूमिका निभाई है। सनातन (Sanatan Dharm) में आधुनिक और समसामयिक चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें समय समय पर बदलाव होते रहे हैं, जैसे कि राजा राम मोहन राय, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) आदि ने सती प्रथा, बाल विवाह, अस्पृश्यता जैसे असुविधाजनक परंपरागत कुरीतियों से असहज महसूस करते रहे। इन कुरीतियों की जड़ो में मौजूद उन श्लोको -मंत्रो को "क्षेपक" कहा या फिर इनके अर्थो को बदला और इन्हें त्याज्य घोषित किया तो कई पुरानी परम्पराओं का पुनरुद्धार किया जैसे विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा आदि। यद्यपि आज सनातन का पर्याय हिन्दू है पर सिख, बौद्ध, जैन धर्मावलम्बी भी सनातन धर्म का हिस्सा हैं, क्योंकि बुद्ध भी अपने को सनातनी कहते हैं।यहाँ तक कि नास्तिक जोकि चार्वाक दर्शन को मानते हैं वह भी सनातनी हैं। सनातन धर्मी के लिए किसी विशिष्ट पद्धति, कर्मकांड, वेशभूषा को मानना जरुरी नहीं। बस वह सनातनधर्मी परिवार में जन्मा हो, वेदांत, मीमांसा, चार्वाक, जैन, बौद्ध, आदि किसी भी दर्शन को मानता हो बस उसके सनातनी होने के लिए पर्याप्त है।
सनातन धर्म किसी एक दार्शनिक, मनीषा या ऋषि के विचारों की उपज नहीं है, न ही यह किसी ख़ास समय पैदा हुआ। यह तो अनादि काल से प्रवाहमान और विकासमान रहा। साथ ही यह केवल एक दृष्टा, सिद्धांत या तर्क को भी वरीयता नहीं देता।अब फिर कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर (Narrator Devkinandan Thakur) के बारे में जानने की जरूरत है। कहा जाता है कि ठाकुर जीको वैदिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त है तथा मात्र 13 वर्ष की आयु में श्रीमद्भागवत पुराण को कंठस्थ कर लिया था। देवकीनंदन ठाकुर महाराज गुरु आचार्य पुरुषोत्तम शरण शास्त्री जी ने इनका नाम देवकीनंदन ठाकुर महाराज रखा तथा उनकी प्रतिभा, बोलने की कला के कारण इन्हें श्रीमद्भागवत पुराण के वाचन का कार्य सौंपा गया। बचपन से ही इनमे कई दिव्या लक्षण दिखने लगे थे। मात्र 6 साल की उम्र में ठाकुर जी घर छोड़कर वृन्दावन आ गए और कृष्ण भजन में मग्न हो गए। कृष्ण के उपासक ठाकुर जी कृष्णलीला मंडली में शामिल हो गए। यह कृष्ण लीला में इस तरह खो जाते थे कि लोगों को कृष्ण की एक मूर्ति लगती थी इस कारण लोग इन्हें ठाकुर जी के नाम से भी पुकारना शुरू कर दिया, इसके बाद वृन्दावन में ही श्री वृन्दावन भागवत पीठाधीश्वर श्री पुरूषोत्तम शरण शास्त्री जी महाराज को गुरू रूप में प्राप्त कर प्राचीन शास्त्र-ग्रन्थों की शिक्षा प्राप्त की ।
इसके बाद देवकीनंदन ठाकुर ने समाज कल्याण के लिए परोपकार के कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करने के प्रयास करना भी प्रारंभ कर दिया। ठाकुर जी ने सन् 1997 में दिल्ली से इन प्रेरणादायी कथाओं (श्रीमद भागवत कथा, श्री राम कथा, देवी भागवत, शिव कथा, भगवत गीता इत्यादि) का प्रारम्भ किया। अब तक हजारों कथाओं के माध्यम से महाराज श्री ने जनमानष में आपसी प्रेम, सदभाव, संस्कृति संस्कार के विचार फैला चुके हैं ।
देवकीनंदन ठाकुर महाराज ने 20 अप्रैल 2006 में विश्व शान्ति सेवा चैररिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की गई जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न जगहों पर कथाओं एंव शान्ति यात्राओं का आयोजन कर रहे है। तथा इस संस्था के कुछ और भी प्रमुख उद्देश्य है जिसमें गो-रक्षा अभियान, गंगा यमुना प्रदूषण मुक्त, दहेज प्रथा, जल एवं पर्यावरण संरक्षण, छुआछूत और आज के आधुनिक युग के युवाओं को भारतीय संस्कृति तथा संस्कारो में डालना जैसे प्रमुख उद्देश्य इस सेवा संस्था के हैं। गौ माता सेवा और पर्यावरण संरक्षण और सुरक्षा के प्रति अलख जगाने वाले ठाकुर जी आज धार्मिक संतों के सिरमौर हैं और मानव कल्याण के साथ ही जगत कल्याण के मार्गदर्शक बने आज सबसे बड़े पूजनीय हैं।

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