Bajrang Dal Row: आखिर क्या है बजरंग दल ,बजरंगबली और हिंदुत्व की राजनीति का झंझट ?

History Of Bajrang Dal: कर्नाटक से उठे बजरंग दल की राजनीति आगे क्या गुल खिला सकती है इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। आज भले ही कर्नाटक के चुनाव में बजरंग दल पर कथित लगाने की कहानी का असर भले ही न दिखे लेकिन उत्तर भारत और खास कर हिंदी पट्टी में बजरंग दल की जो हैसियत है वह चुनाव को प्रभावित करने वाली है और करती भी रही है। विश्व हिन्दू परिषद् का यह संगठन हिन्दू युवाओं का ऐसा दल है जिसकी पहुँच उत्तर से लेकर दक्षिण तक है। हालांकि यूपी,मध्यप्रदेश और राजस्थान को छोड़ दें तो देश के अन्य भागों में इसके नर्तन भले ही कमजोर दीखते हों लेकिन बीजेपी की राजनीति को आगे बढ़ाने में इसकी भूमिका अहम् रही है। जहाँ -जहाँ संघ और विश्व हिन्दू परिषद् की पहुँच है वहाँ बजरंग दल मजबूत है और चुनाव खेल को साधने में भी महत्वपूर्ण है।
बजरंग दल की स्थापना 8 अक्टूबर 1984 में अयोध्या में की गई थी। इसकी स्थापना की भी अपनी कहानी है। उस समय अयोध्या से रथ यात्रा निकाली जा रही थी लेकिन राज्य प्रशासन ने उस समय सुरक्षा देने से मना कर दिया था। फिर संतों के आह्वान पर वीएचपी ने वहां के युवाओं को रथ यात्रा की सुरक्षा देने की बात कही। वीएचपी ने कहा था कि प्रभु श्रीराम के कार्यों के लिए हनुमान सदैव् उपस्थित रहते हैं। रथ यात्रा की सुरक्षा में लगे युवाओं को बजरंगियों की टोली कही गई और इस टोली को बजरंग दल कहा गया। कह सकते हैं कि तब बजरंग दल की स्थापना किसी के खिलाफ नहीं नहीं की गई थी। केवल यही कहा गया था कि जो हिन्दुओं को चुनौती देगा ,उसका समना बजरंग दल करेगा। उस समय तो एक छोटी सी टोली स्थानीय युवओं की बनाई गई थी लेकिन बाद में देश के बहुत से युवा इस दल से जुटते गए और बजरंग दल ने बड़ा आकार ले लिया। बजरंग दल की भूमिका राम जन्म भूमि आंदोलन में काफी अहम् रहा है। राम शिला पूजन ,चरण पादुका पूजन ,राम ज्योति यात्रा ,कार सेवा और शिलान्यास में इस बजरंग दल ने बहुत कुछ किया है। अब इसकी जड़े कफी मजबूत हो चुकी है और इसकी शाखाएं देश भर में फ़ैल गई है। यद् रहे तब के बाद जितने भी धार्मिक आंदोलन हुए हैं ,बजरंग दल के लोगों ने बड़ी सांख्य में बलिदान भी दिया है। 1993 में बजरंग दल का अखिल भारतीय स्तर पर संगठन तैयार किया गया। सभी राज्यों में बजरंग दल की इकाई बनाई गई। सेवा ,सुरक्षा और संस्कार यही है बजरंग दल के आधार। इस दल के घोषित उद्देश्य में शामिल है हिन्दुओं की सुरक्षा ,हिन्दू धर्म का विस्तार ,शाश्वत हिन्दू जीवन का संरक्षण को बढ़ाना। बजरंग दल के कार्यों को देखें तो कई चीजें दिखती है। संगठन के तौर पर बजरंग दल साप्ताहिक मिलन करते हैं। बालोपसना केंद्र चलाते हैं। हिन्दू उत्सव मनाते हैं ,शौर्य प्रशिक्षण करते हैं और महापुरुषों मनाते रहते हैं। ये सब इनके संगठनात्मक गतिविधियां हैं।
इसके साथ ही इस दल के अखिल भारतीय कार्यक्रम भी हैं। इस कार्यक्रम के तहत हर साल 14 अगस्त को अखंड भारत दिवस मनाया जाता है। हनुमान जयंती ,हुतात्मा दिवस और 6 दिसंबर को शौर्य दिवस मनाने के कार्यक्रम होते रहते हैं। इस बजरंग दल के कुछ आंदोलत्मक गतिविधियां भी है। धार्मिक मंदिरों की सुरक्षा ,गौरक्षा ,आतंरिक सुरक्षा ,छुआछूत के खिलाफ आवाज ,सांस्कृतिक प्रदूषण और बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन। ये अकसर चलते ही रहते हैं। इसके अलावे बजरंग दल कई रचनात्मक काम भी करते रहते हैं। जैसे रक्तदान शिविर ,आपदा प्रबंधन और वृक्षारोपण जैसे काम। ऊपर से देखने में इस दल में कोई दोष नजर नहीं आता। लेकिन बदलती राजनीति ने इस दल को भी प्रभावित किया है। चुकी यह बजरंग दल अब अपनी पहचान बना चुका है इसलिए यह चुनावी राजनीति को भी प्रभावित करता है। संघ और बीजेपी के लिए यह बड़ा वोट बैंक है और यह सब हिंदुत्व के नाम पर चलता रहता है। बदली राजनीति यह है कि इस दल से जुड़े जितने भी लोग हैं सब बीजेपी के वोटर हैं। जो हिन्दू बीजेपी को वोट नहीं देते उनके खिलाफ भी ये कई बार खेल कर जाते हैं और अक्सर विवादों में फंसते हैं। ऐसे में जब कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस ने जैसे ही अपने घोषणा पत्र में कहा कि समाज में कट्टरता फ़ैलाने और समाज को तोड़ने वाले संगठन पीएफआई और बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है ताकि सेक्युलर समाज में अतिवाद नहीं फैले। इस घोषणा पत्र के बाद बीजेपी की राजनीति हिंदुत्व को आगे बढ़ने वाली होती चली गई। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने बजरंग दल को बजरंगबली से जोड़ दिया और कहने लगे कि कांग्रेस बजरंगबली को कैद करना चाहती है। जाहिर है यह सब हिन्दू ध्रुवीकरण की राजनीति है। लेकिन चुकी बीजेपी की पूरी राजनीति हिन्दू ,हिंदुत्व और गाय पर आधारित है इसलिए इस राजनीति को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता। यह राजनीति और भी आगे बढ़ेगी। कर्नाटक के चुनाव परिणाम आने के बाद हिंदुत्व की राजनीति कुलांचे मर सकती है। अगर कर्नाटक में बीजेपी जीत जाती है तो उसका बड़ा श्रेय बजरंगबली की राजनीति को दिया जा सकता है और हार जाती है तो हिंदुत्व की यह राजनीति और तीब्र होगी ताकि राजस्थान और मध्यप्रदेशी में हिंदुत्व के जरिये कांग्रेस को पटखनी दी जा सके।

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