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और जमींदोज हो जायेगा जोशीमठ -------

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भूगर्भीय वैज्ञानिको और आधुनिक तकनीकी एक्सपर्ट्स के कमेंट्स को माने तो तो आने वाले समय में जोशीमठ का नामोनिशान मिट जायेगा। प्रकृति के साथ जिस तरह से छेड़छाड़ हुई है उसमे अब विज्ञानं का कोई भी तरीका जोशीमठ को बचाने में सक्षम नहीं है। अब सरकार के सामने बस एक ही उपाय है कि वह जोशीमठ की जनता को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाए और उसके पुनर्वास की व्यवस्था करे। जोशीमठ से जुड़े जो वैज्ञानिक तथ्य सामने आ रहे हैं,वे चौंकाने वाले है और सरकार की नीतियों का खुलासा करते हैं। आप कह सकते हैं कि हिंदुओं और सिखों के पवित्र तीर्थ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का गेटवे कहा जाने वाला ये वही जोशीमठ नगर है, जिसके धंसने की खबरें इन दिनों में सुर्खियों में हैं। इस नगर के 603 मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं। 70 परिवारों को दूसरी जगह भेजा जा चुका है। बाकी लोगों से सरकारी राहत शिविरों में जाने को कहा गया है। जोशीमठ के भीतर के सारे जलभंडार तो पहले ही सुख गए हैं। खुदाई के दौरान जल श्रोत फुट गए थे और सारे जल निकल गए। सरकार देखती रही और कुछ कर न पायी। या तो पहले की कहानी है। लेकिन इस कहानी का वर्तमान ये है कि जोशीमठ अब तबाही के

महंत ‘यति नरसिंहानंद’ सरस्वती (Mahant 'Yati Narasimhanand') का सनातन प्रेम अद्भुद है

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अक्सर अपने बयानों को लेकर विवादों में रहने वाले गाजियाबाद के डासना स्थित देवी मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती अब हिंदू संतों के सबसे बड़े संप्रदाय 'जूना अखाड़े' के महामंडलेश्वर हैं। लेकिन उनकी असली पहचान एक ऐसे संत की है जो सनातन धर्म की कथित रक्षा के नाम पर विष वमन से नही चूकते। उनके निशाने पर अक्सर मुस्लिम समाज के लोग होते है तो कभी महिलाए भी। वे निडर हैं ,साहसी हैं और संत भी लेकिन जिस हिंदू ,हिंदुत्व और सनातन धर्म की वे दुहाई देते नही थकते उससे मेल खाता उनका स्वभाव नहीं दिखता ।सनातन तो प्रेम और त्याग का शिक्षा देता है ।वसुधैव कुटुंबकम् की बात करता है । देश का संत समाज और धर्म संसद अगर महंत यति को सनातनी परंपरा के मुताबिक स्वीकार करता है तो भला इसमें यति को क्या गलती । लेकिन एक बात साफ है कि महंत यति अपने उग्र विचारो से देश को झकझोड़ने में अपनी भूमिका निभाने से नहीं चूकते।कोई अगर यह कहे कि महंत यति अनपढ़ होने की वजह से कट्टरता धारण किए हुए है तो यह भी गलत है ।वे पढ़े लिखे महंत हैं और विदेशों में भी रहे हैं । एक जानकारी से यह भी पता चलता है कि यति नरसिंहानंद सरस्वती का अ

Makar Sankranti 2022: गोरखपुर में सज रहा है बाबा गोरखनाथ का दरबार ,उनसे जुडी है खिचड़ी (Khichadi) चढाने की अद्भुत कथा

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बाबा गोरक्षनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उनको आदियोगी भी कहते हैं। स्थानीय लोग बाबा गोरक्षनाथ को बाबा गोरखनाथ कहते हैं, उनके नाम पर ही गोरखपुर शहर का नाम और गोरखनाथ मंदिर का नाम रखा गया है। वैसे तो सालो भर गोरखनाथ मंदिर (Gorakhnath Mandir) में भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन मकर संक्रांति के समय का नजारा तो कुछ और ही होता है। बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परम्परा है और यह परम्परा मां ज्वाला देवी से जुड़ी हुई है। गोरखपुर का गोरखनाथ मंदिर। इसे नाथ पीठ (गोरक्षपीठ) का मुख्यालय भी माना जाता है। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस पीठ के पीठाधीश्वर हैं। मंदिर परिसर में मकर संक्रांति के दिन से महीने भर तक चलने वाला खिचड़ी मेला यहां का प्रमुख आयोजन है। इसका शुमार उत्तर भारत के बड़े आयोजनों में होता है। इस दौरान उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल और अन्य जगहों से लाखों लोग गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने यहां आते हैं। भक्त खिचड़ी चढ़ाते हैं और प्रसन्न होकर घर लौटते हैं। मकर संक्रांति के दिन भक्त और भगवन का यह खेल अद्भुत नजारा पेश करता है। परम्परा के मुताबिक बतौर पीठाधीश्वर प

एक ऐसे संत जिसके सामने सभी धर्मालम्बी मुस्कुराने लगे

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क्या आप कथावाचक ,कृष्ण उपासक और सनातनी देवकीनंदन ठाकुर (Devkinandan Thakur) को जानते हैं ? अवश्य जानते होंगे। उनकी कथाये सुनी होंगी और उनके सनातनी जीवन शैली के मुरीद हुए होंगे। मथुरा,वृन्दावन (Mathura Vrindavan) में रहने वाले ठाकुर जी विदेशों में जाकर भी सनातनी संस्कृति (Sanatani culture) का विस्तार करते हैं और इस वैज्ञानक युग में भी अपने तर्कों और साक्ष्य के जरिये जो धर्म को नहीं मंटा है उसके भीतर भी धार्मिक आस्था का अंकुरण कर देते हैं। देवकी नंदन ठाकुर जी का प्रभाव ही कुछ ऐसा है कि राजनीति से जुड़े लोग भी उनकी तरफ खींचे चले आते हैं। बीजेपी (Bjp) जैसी पार्टी का कुछ ख़ास लगाव ऐसे धार्मिक संतों से कुछ ज्यादा ही है। यह बात और है कि संतो की कोई जाति और पार्टी नहीं होती लेकिन जिस धर्म को संत समाज जीता है उस धर्म को आगे बढ़ाने में उसकी रूचि ज्यादा होती है। चुकी बीजेपी (BJP) अपने को हिन्दू धर्म (Hindu Dharm) के ज्यादा पास होने की बात करती है यही वजह है संत समाज और सनातनी संतों के प्रति उसकी आस्था भी बढ़ती गई है। वैसे देवकीनन्दन ठाकुर जी का सानिध्य सभी को मिलता है और सभी दलों के लोग उनके अमृतवा

रूस ,चीन और नेपाल की राजनीतिक बयारें बहुत कहती है

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भू -राजनीति कभी -कभी सफल भी होती है तो कभी ढेर भी हो जाती है। पूरी दुनिया में जहां भी भूराजनीति जारी है ,वहां की जनता तो परेशान है ही, सरकारें भी अशांत हैं। अशांत सरकारें जनता के खिलाफ चली जाती है और परिणाम ये होता है कि या तो जनता उस सरकार को गिरा देती है या फिर सरकार के मुखिया को अपदस्त। रूस -यूक्रेन युद्ध के बीच रूस के भीतर जो कुछ भी होता दिख रहा है वह मामूली नहीं है। रूस के एक युद्ध विश्लेषक और पूर्व वफादार इगोर स्ट्रेलकोव ने कहा कि व्लादिमीर पुतिन को उखाड़ फेंकने और उनका ताज हथियाने की दौड़ जारी है। पुतिन के साथ आगे क्या होगा और रूस की दशा क्या होगी यह कोई नहीं जानता। यूक्रेन भी तबाही के कगार पर है। यूक्रेनी जनता आगे किस हालत में होगी यह भी भला कौन जाने ! उधर नेपाल में चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। दुनिया में घट रही कई घटनाओं में से एक यूक्रेन -रूस विवाद आज सबसे ज्यादा सुर्ख़ियों में है। वैसे भारत -चीन विवाद भी कुछ कम नहीं है लेकिन सच तो यही है कि भारत के लोभी लोग चीनी सीमा विवाद से परे जाकर खुद के विवाद और लाभ पर ज्यादा फोकस हैं। अंजाम